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लेखनी कहानी -29-Dec-2022 घर वापसी

बड़ा जश्न का माहौल था । समाचार ही कुछ ऐसा था कि सबके चेहरे खिल गये थे । "साहेब" बता रहे थे कि "मुन्ना" को जमानत मिल गई है । इस समाचार को सुनकर पार्टी मुख्यालय "अयोध्या" की तरह जगमगा उठा । आखिर "घर वापसी" हो रही थी "मुन्नाभाई" की । 14 महीने तक जेल की हवा खाने के बाद अच्छों अच्छों का दिमाग ठिकाने आ जाता है और हाजमा ठीक हो जाता है । "मुन्नाभाई" कोई अलग तो नहीं है , उसका भी हाल ऐसा ही होगा , यह साहेब अच्छी तरह से जानते हैं इसलिए पार्टी दफ्तर में माहौल ऐसा बनाने का आदेश दे दिया जैसे भगवान राम 14 वर्ष वनवास काटकर अयोध्या लौट रहे हों । 

वैसे साहेब हिन्दू होकर भी भगवान राम को मानते नहीं अलबत्ता "रहीम" को मानते हैं । कभी दीपावली पर दो दीये नहीं जलाये पर रमजान के महीने में "इफ्तार पार्टी" करना कभी नहीं भूलते । कभी दीपावली की राम राम उनके मुंह से नहीं सुनी पर "ईद मुबारक" कहते थकते नहीं । तभी तो महान सेकुलर कहलाते हैं वे । कभी तिलक नहीं लगाते , कभी कलावा नहीं बंधाते पर "जाली टोपी" बड़े फक्र से पहनते हैं । सेकुलर लोगों की यही तो पहचान है । 2014 के पहले कभी मंदिर जाते नहीं देखा उन्हें मगर मस्जिद में जाकर फोटो खिंचवाना कभी भी नहीं भूलते हैं । लगभग 50 वर्षों से राजनीति कर रहे हैं इसलिए पत्तलकार उन्हें "चाणक्य" भी कहते हैं । 

जब सूबे में विधान सभा के चुनाव हुए तो जनता ने उन्हें ठेंगा दिखा दिया मगर साहेब तो राजनीति के चाणक्य हैं जनता की बात क्यों मानते भला ? लोकतंत्र की दुहाई देने वालों ने कभी लोकतंत्र का सम्मान किया है क्या ? जो लोग आज कह रहे हैं कि "डर का माहौल है" या "लोकतंत्र खत्म हो गया है अब" उन्हें ये पता ही नहीं है कि उनके पुरखे इस देश में आपातकाल लगाकर पूरे देश को जेल बनाकर बैठे हैं । और मजा तो देखिए कि कोई पत्तलकार उनसे ऐसा कोई सवाल नहीं करता और फिर भी "गोदी मीडिया" का रोना रोता है । साहेब का तो यह हाल है कि वे किसी के सगे नहीं रहे उसके बाद भी नेता उनकी विश्वसनीयता के नाम पर शपथ लेते हैं । इसे ही तो दोगलापंथी कहते हैं । 

तो साहेब ने एक दांव चला और घोर हिन्दुत्ववादी पार्टी को गठबंधन से तोड़कर अपने पाले में कर लिया । वह "पलटूराम" भी "मुख्यमंत्री" पद का इतना लालची था कि उसने दीन ईमान यानि पार्टी की समस्त विचारधारा ताक पर उठाकर रख दी और गठबंधन से नाता तोड़कर साहेब से हाथ मिला लिया । साहेब ने अपने साथ "राजमाता" को भी कर लिया और "महाठगबंधन" बनाकर जनता को ठेंगा दिखाकर ठगने के लिए सरकार बना ली । सरकार बनाने का तीनों का एक ही उद्देश्य था "पैसा" । तीनों ने जमकर लूट खसोट की । 

साहेब "किंगमेकर" बन गये और "पलटूराम" मुख्यमंत्री । साहेब जब जब भी किंगमेकर बने हैं तब तब गृह विभाग अपने पास रखा है और सबसे खास चमचे को गृह मंत्रालय दिलाया है । अबकी बार "मुन्नाभाई" का नंबर आ गया । एक कहावत है कि "जब सैंया भए कोतवाल तो अब डर क्या" । जब साहेब किंगमेकर हों और मुन्नाभाई गृह मंत्री तो ऐसा कैसे हो सकता है कि जमकर लूट खसोट नहीं हो ? सब लोगों में होड़ लग गई लूटने की । कौन व्यक्ति सबसे कम समय में सबसे अधिक माल "लूट" सकता है , इसकी प्रतियोगिता चल निकली । मुन्नाभाई ने तो एक इंस्पेक्टर को ठेका दे दिया कि हर महीने 100 करोड़ रुपए की वसूली करके देनी है । जब 100 करोड़ रुपए मंत्री को देगा तो जनता से कितनी वसूली करेगा ? कौन जाने उसने कितनी वसूली की मगर जब वह पकड़ में आया तो उसके पास कई सारी नोट गिनने की मशीन पाई गई । पैसे की भूख इतनी बढ गई कि देश के नामी उद्योग पति से मोटी रकम वसूल करने के लिए उसने विस्फोटकों से भरी एक गाड़ी उसके मकान के सामने खड़ी कर दी थी । जब इतने भयंकर खुलासे होने लगे तो मुन्नाभाई को जेल की हवा खानी पड़ी   

जिस दिन से मुन्नाभाई जेल गया था उस दिन से साहेब का दिल धकधक करने लगा था कि कहीं मुन्नाभाई उसकी पोल ना खोल दे ? इसलिए साहेब ने मुन्नाभाई को जेल से छुड़ाने के लिए सारे घोड़े दौड़ा लिए मगर वे असफल रहे । जब तक मुन्नाभाई जेल के अंदर थे तब तक साहेब की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई थी । अब जब मुन्नाभाई जेल से जमानत पर छूटकर आ गया है तो सबसे अधिक राहत साहेब को ही मिली थी । इसीलिए तो उसने जश्न मनाने का आदेश दिया था । जनता को गुमराह करने के लिए ऐसा माहौल भी बनाने का आदेश दिया कि जनता यह समझे कि मुन्नाभाई लूट , डकैती जैसे अपराधों में जेल काटकर नहीं आया बल्कि आजादी की लड़ाई लड़कर आया है । बाकी का काम खैराती पत्तलकार कर ही देंगे । 

इसलिए हर गली मौहल्ले को सजाया गया । चौराहों पर रंगोली बनाई गई और मुन्नाभाई का स्वागत ऐसे किया गया जैसे कि वह कोई जंग जीतकर आया हो । अब देखते हैं कि यह घर वापसी कब तक रहती है । वैसे तो हमारे देश में न्याय व्यवस्था इतनी "तेज" है कि फैसला होने में पच्चीस साल तो बहुत मामूली बात है । इससे ज्यादा समय भी लग सकता है । लालू यादव के खिलाफ सारे मुकदमों की सुनवाई 30 वर्ष बाद भी अभी तक पूरी नहीं हुई है । तो मुन्नाभाई खैर मना सकता है कि उसका नंबर भी 25 - 30 साल बाद आयेगा । जब तक वह जिंदा रहेगा या नहीं, भगवान ही जानते हैं । तब तक बकरे की मां खैर मना सकती है । 

श्री हरि 
29.12.22 


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4 Comments

Haaya meer

30-Dec-2022 07:23 PM

👌👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

31-Dec-2022 12:23 AM

धन्यवाद जी

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बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

31-Dec-2022 12:22 AM

धन्यवाद जी

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